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अन्ना बनाम रामदेव चारित्रिक विश्लेषण – Jagran Junction Forum

सरोकार
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दिल्ली पुलिस और प्रशासन ने जो व्यवहार रामलीला मैदान में जुटे बाबा रामदेव और उनके समर्थकों के साथ किया, भले ही आज उसे तानाशाही बर्ताव का नाम दिया जा रहा हो, लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि अहंकार भावना से त्रस्त बाबा ने दूसरा और कोई विकल्प ही नहीं छोड़ा था. बाबा के इस अनशन के पीछे की मंशा एकदम साफ थी. वह केवल योगशिविर के नाम पर अपने समर्थकों का जमावड़ा लगा, सरकार को अपनी शक्ति का नमूना दिखाना चाहते थे. देखा जाए तो यह कदम उठाना एक हद तक सही फैसला था क्योंकि अगर ऐसा न किया जाता तो अगले दिन स्थिति काबू से बाहर हो सकती थी. गौरतलब है कि पॉच हज़ार लोगों के स्थान पर बाबा ने काफी अधिक लोगों को बुलावा भेज रखा था, जिन्हें संभालना प्रशासन के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता था.


और रही बात अन्ना और बाबा के अनशनों में समानता की तो अन्ना के आंदोलन “इण्डिया अगेंस्ट करप्शन” और बाबा रामदेव के “भारत स्वाभिमान ट्र्स्ट” में कोई समानता हो ही नहीं सकती, क्योंकि एक ओर जहां अन्ना के अनुयायी परिष्कृत मानसिकता के साथ अन्ना का समर्थन कर रहे हैं और वह उनकी भ्रष्टाचार विरोधी नीतियों से भली-भांति अवगत हैं, वहीं बाबा के भक्त अभी भी उनकी मांगों की गंभीरता को नहीं समझते, दूसरी ओर अन्ना ने जहां शहरी और शिक्षित वर्ग पर अपना प्रभाव डाला, जबकि बाबा से केवल उनके भक्त ही प्रभावित हुए, जो निःसंदेह कहीं ज्यादा मात्रा में हैं. और सबसे बडी असमानता यह कि बाबा के आंदोलन को प्रयोज़ित आंदोलन कहा जा रहा है जिसे कॉग्रेस विरोधी पार्टियों और धार्मिक संगठनों का समर्थन प्राप्त है, वहीं अन्ना के अनशन को आलोचकों ने सरकारी पैंतरा बताया.


क्या बाबा रामदेव और अन्ना हजारे की देश, काल और परिस्थिति के बारे में अंदाजा लगा पाने की क्षमता में ज्यादा फर्क है?

बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण अंतर है दोनों में. अन्ना हज़ारे की पृष्ठभूमि पर नज़र डालें तो वह कई वर्षों से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए कार्यरत हैं और एक समाजसेवी के रूप में अपनी पहचान बना पाने में सफल हुए हैं. और वह ये भली-भांति जानते हैं कि किसी भी योजना को अंतिम रूप देने के लिए उस पर शुरू से अंत तक कार्य किया जाना चहिए, ताकि किसी भी तरह की परिस्थिति से निपटारा किया जा सके, ताकि आप अपनी मुहिम को और मजबूत बना सकें. लेकिन बाबा रामदेव जो एक सफल योगाचार्य हैं, वह केवल अपनी राजनैतिक पहचान बनाने के लिए बिना कोई प्रभावी रणनीति बनाए इस आंदोलन को छेड़ बैठे, और सरकार को उनके इस हास्यास्पद पहल के छिद्र समझ आ गए, जिनकी वजह से बाबा को अपना अनशन समाप्त करना पड़ा. वहीं दूसरी ओर अन्ना इस बात को समझते हैं कि भारत की युवाशक्ति बहुत मजबूत है, और उन्हें इकट्ठा किए बिना कोई बड़ी जंग नहीं जीती जा सकती, लेकिन बाबा केवल अपने अंध-भक्तों की भावनाओं को अपने आंदोलन का आधार बना अपने अनशन की शुरुआत कर बैठे जिसका परिणाम सबके सामने है.


क्या बाबा रामदेव की सत्याग्रह आयोजित करने के पीछे की मंशा राजनीतिक है?

बिल्कुल, क्योंकि बाबा का यह बचकाना कदम यह प्रमाणित करता है कि बाबा राजनीति में आने की अपनी मंशा को सिद्ध करने के लिए ही कालाधन वापिस लाने की इस मुहिम को हवा दे बैठे, जबकि उनके पास कोई ठोस रणनीति थी ही नहीं, इसके उलट अनशन तोड़ और पुलिस कार्यवाही से बचने के लिए समर्थकों को अपने हाल पर छोड़ भाग जाने के कारण निःसंदेह कई वर्षों की अपनी बनी-बनाई पहचान को बाबा ने खुद अपने हाथों मिट्टी में मिला दिया है.


क्या अन्ना हजारे अपनी नीयत और रणनीति को लेकर संदेह से परे हैं?

अन्ना की पृष्ठभूमि और उनकी रणनीतियों को देखकर तो ऐसा ही लगता है, लेकिन इस बात से भी किनारा नहीं किया जा सकता कि सरकार के आलोचक अन्ना को हमेशा ही सरकार के सेफ्टी-वॉल्व की तरह ही देखते आए हैं.


क्या बाबा रामदेव ने सत्याग्रह के मूल सिद्धांत पर कुठाराघात किया है?

सबसे पहले तो बाबा का यह आंदोलन सत्याग्रह हो ही नहीं सकता यह सिर्फ उनकी स्वार्थ पूर्ति का एक जरिया मात्र था. सत्याग्रह दृढ़ निश्चय होकर किया जाता है, ताकि बड़ी से बड़ी मुश्किल के सामने आप अपने हाथ न खड़ा करें, लेकिन बाबा के आंदोलन को समाप्त करने के लिए सरकार ने जो किया बेशक वह भी सही नहीं था, न उसे सही कहा जा सकता है. लेकिन उस समय अपने हज़ारों समर्थकों को छोड़ बाबा का छिपते-छिपाते यूं भाग जाना कोई प्रशंसा लायक कदम नहीं है, और बिना अपनी मांगे मनवाए अपना आमरण अनशन तोड़ना, उनकी निश्चय भावना की कमजोरी को साफ जाहिर करता है.


साथ ही बाबा रामदेव शुरु से ही कर्म में नहीं बोलबचन में ज्यादा विश्वास रखते हैं, इसलिए उनसे व्यवहारिक तौर पर किसी भी तरह का कोई ठोस कदम उठाने की कोशिश करने की उम्मीद रखना बेमानी है.



हॉ, एक बात अवश्य कही जा सकती है कि बाबा रामदेव हों या अन्ना हजारे, दोनों द्वारा एक ही मुख्य मुद्दे पर चलाए गए आंदोलन के कारण जनता में भ्रष्टाचार का मामला ज्यादा संवेदी रूप से सामने आया और अब इस मुद्दे को राष्ट्रीय मुद्दा माना जाने लगा है. और यही वह केंद्रीय बिंदु है जिसके धरातल पर अन्ना हजारे और बाबा रामदेव समान तल पर खड़े नजर आते हैं.



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