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मुझे भारतीय शासन व्यवस्था की गरीबी और गरीबों से संबंधित नीतियों पर तरस आती है. ये नीतियां अपने आप में हास्यास्पद तो हैं ही लेकिन साथ ही इनमें गहरी चालाकी और जनता को मूर्ख बनाने की कवायद अधिक लगती है.
भारतीय योजना आयोग के मुताबिक हर वो शख्स जिसकी मासिक आय 578 रुपये या उससे अधिक है, बीपीएल श्रेणी में नहीं गिना जाएगा या यूं कहें कि प्रतिदिन 20 रुपये कमाने वाला व्यक्ति, सरकार की नज़र में इस महंगाई के ज़माने में, अपने पूरे परिवार का पेट भरने में समर्थ है. ज़ाहिर है, ऐसे में बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे) से जुड़ी योजनाओं और भोजन, शिक्षा जैसी कई जरूरी चीजों में मिलने वाली छूट से उसका परिवार वंचित रह जाएगा. सरकार द्वारा इन बीपीएल परिवारों को पहचान के रूप में कार्ड दिये गए हैं जिनके आधार पर उन्हें सस्ता राशन मिलता है. लेकिन भ्रष्टाचार के चलते यह खुशनसीबी भी किसी-किसी को ही मिलती हैं. गौर करने वाली बात यह कि गांवों में यह हिसाब 20 रूपये की जगह 15 रूपये का है. इस गरीबी रेखा का विभाजन व्यवहारात्मक होने की बजाए हास्यास्पद अधिक प्रतीत होता है. यहां तक कि विश्व बैंक ने भी इस मानक को काफी हद तक कम माना है.
हाल ही में हुए एक अध्ययन के अनुसार, पिछले तीन महीनों में भारत के लोगों को सबसे ज्यादा किसी चीज ने सताया है तो वह है दिन-ब-दिन बढ़ती खाने-पीने के सामान की कीमत. रिपोर्ट पर गौर किया जाए तो मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने की बजाए अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा बढाने के लिए लोग अधिक खर्च घर की साज सज्जा, महंगे कपड़ों और घूमने-फिरने पर करने लगे हैं. इसके अलावा पेट्रोल, डीज़ल जैसे ज़रूरी ईंधनों की लगातार बढती कीमतें भी चिंता का विषय बन गई हैं. इन सब का सीधा असर उन लोगों पर पड़ता है जिन्हें सरकार ने गरीबी रेखा के नीचे माना है या जिनके जीवन का मतलब ही अपने परिवार के लिये दो जून की रोटी कमाना है.
महंगाई के इस दौर में दालें, जो की एक ज़माने में सबसे सस्ता और सादा खाना मानी जाती थीं, उनकी कीमतें तक आसमान छू रही हैं. ऐसे में 20 रूपये में घर चलाना तो एक सपना सा ही लगता है. पर यह बात शायद उन लोगों को समझ में नहीं आ पा रहीहैं जिन्होंने गरीबों को ही दो श्रेणियों में बॉट दिया है. एक वो जिन्हें सरकार द्वारा बीपीएल कार्ड दिए गए हैं और दूसरी श्रेणी उन लोगों की है जिन्हें सच में सहायता की ज़रूरत है पर वह इससे पूरी तरह वंचित हैं. इस विषय को गम्भीरता से लेने वाले लोग बीपीएल श्रेणी को “भुखमरी श्रेणी”भी कहते हैं. संविधान द्वारा भारतीय लोकतंत्र की व्यवस्था एक कल्याणकारी राज्य के रूप में की गयी है, जिसका उद्देश्य लोगों के उत्थान और उनकी भलाई के लिये कार्य करना है. लेकिन सरकार की ओर से हो रही सुस्त कर्यवाही और लचर व्यवस्था के चलते बीपीएल परिवारों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का अंदाज़ा लगाया जा सकता हैं.
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