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प्यार व पवित्रता के प्रतीक अब विश्वासघात के संकेतक बन गए हैं

सरोकार
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flower

फूल जो कभी पवित्रता के परिचायक माने जाते थे, बदलते परिवेश के साथ-साथ वह भी अपना औचित्य खोते जा रहे हैं. जिन्हें कभी विश्वास का प्रतीक मान, एक दूसरे को दिया जाता था आज वही विश्वासघात करने का जरिया मात्र बन कर रह गए हैं. हम अकसर रंगों के आधार पर फूल देने वाले की भावनाओं को आंकते हैं. जहां सफेद फूल समझौते का और पीला फूल दोस्ती का प्रतीक माना जाता है, वहीं स्नेह और प्रेम के प्रतीक के रूप में लाल फूल दिया जाता है. लेकिन हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण ने रिश्तों में फूलों के महत्व को कम करते हए यह साबित कर दिया है कि अगर आपका प्रेमी आपको फूल देने में अधिक यकीन रखता है तो यह प्यार की निशानी नहीं, बल्कि उसके धोखेबाज होने का सबूत है. अर्थात वह अपने रिश्ते के प्रति गंभीर नही हैं और समय आने पर आपको धोखा भी दे सकता है. बदलती जीवनशैली के चलते लोगों की प्राथमिकताओं में भी बदलाव आने लगा है व व्यक्तिगत रिश्तों की अहमियत लगभग खो सी गई है तथा उनका स्थान अब वैयक्तिक स्वार्थ ने ले लिया है. इसी का परिणाम है कि अब संबंधों का टूटना-बनना एक आम बात हो गई है. दूसरों की भावनाओं की परवाह किए बगैर लोग अपने स्वार्थपूर्ति को अधिक महत्व देने लगे हैं.


छोटी-छोटी बातों पर एक-दूसरे से मुंह फेर लेते हैं, जिसका सबसे बड़ा कारण यह है कि अब संबंधों के वो मायने ही नहीं रह गए हैं, जिनके आधार पर लोग एक-दूसरे का साथ निभाने के लिए प्रेरित होते थे. वर्तमान समय, मूल रूप से प्रतिस्पर्धा प्रधान हो चुका है और एक-दूसरे से आगे निकलना ही एकमात्र ध्येय रह गया है. इसीलिए रिश्तों का कद दिनों दिन बौना होता जा रहा है. झूठ बोलना या धोखा देना कोई बड़ी बात नहीं रह गई है. इसके अलावा थोड़े समय पश्चात ही एक-दूसरे का साथ नीरस और उबाऊ लगने लगता है. इसी के परिणाम स्वरूप अब अल्पकालीन संबंधों को अधिक महत्ता मिलने लगी है. फिल्मों को समाज का आइना माना जाता है क्योंकि कहीं न कहीं यह वास्तविकता से जुड़ी होती हैं. इसी से उदाहरण लिया जाए तो जहां पहले फिल्मों में दीर्घकालीन रिश्तों की प्रधानता रहती थी, वहीं आज फिल्में भी रिश्तों के बोझ तले दबे हुए पात्रों को ही दर्शाती हैं. रिश्तों की अहमियत किस कदर और कितनी तेजी से समाप्त हो रही है यह फिल्मों के माध्यम से आसानी से देखा जा सकता है.


आर्थिक उन्नति और वैश्वीकरण जहां हमारे व्यावसायिक जीवन पर हावी हुआ है वहीं हमारा व्यक्तिगत जीवन भी इससे अछूता नहीं रह गया है. बेहतर आजीविका के लिए लोगों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर पलायन होना आम बात है या जब काम नीरस लगने लगता है तो व्यक्ति के सामने स्थानांतरण ही एक अच्छा विकल्प रह जाता है. लेकिन अब तो रिश्ते भी तेज़ी से स्थानांतरित होते जा रहे हैं, भले ही इसकी पहल किसी महिला द्वारा हो या फिर पुरुष द्वारा. प्रेम संबंधों की बात छोड़ भी दी जाए तो पारस्परिक संबंध भी अब उतने मजबूत नहीं रह गए.


जहां पहले संयुक्त परिवार भारतीय समाज की पहचान माने जाते थे, वहीं आज एकल परिवारों ने उनका स्थान हथिया लिया है. यह अकसर देखा गया है कि एक ही घर में रहते हुए लोग एक-दूसरे की भावनाओं और परेशानियों से अनभिज्ञ रहते हैं. आज जब परिवार के सदस्यों के पास एक-दूसरे के लिए समय नहीं रह गया तो किसी और से क्या अपेक्षा की जा सकती है. यह सर्वमान्य तथ्य है कि विश्वास ही किसी रिश्ते की मूलभूत आवश्यकता है और जिस पर आप सबसे अधिक विश्वास करते हैं, अगर वही आपकी भावनाओं की अहमियत नहीं समझता तो भावनात्मक क्षति पहुंचना तो स्वभाविक ही है. लेकिन दूसरों को बदलने से पहले जरूरी है कि आप खुद को और अपनी प्राथमिकताओं को समझें और फिर किसी भी रिश्ते की पहल करें ताकि आगे चलकर आपके और आपके साथी के बीच किसी भी तरह का कोई मनमुटाव न पैदा हो.


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