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विदेशों में व्याप्त रिश्तों के बाजारीकरण का एक और नमूना!!

सरोकार
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broken marriageविदेशी लोगों के जीवन में संबंधों की अहमीयत हमेशा न्यूनतम रही हैं. व्यक्तिगत अपेक्षाओं और अभिरुचियों को पूरा करने के लिए रिश्तों का टूटना कोई नई बात नहीं हैं. बच्चों के बड़े होते ही माता-पिता पूर्ण रूप से उनकी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं. इतना ही नहीं बच्चों के जीवन में अभिभावकों का हस्तक्षेप भी गैर-जरूरी समझा जाता हैं. विदेशी रहन-सहन में परिवार की एकता से ज्यादा वैयक्तिक स्वतंत्रता पर ही बल दिया जाता रहा. लेकिन हाल ही में ऑस्ट्रेलिया की एक निजी वेबसाईट ने जो दावा किया है, उसे देखकर तो यही लगता है कि अब वहां संबंधों का बाजारीकरण भी शुरु हो गया हैं. अपने अलग जीवन जीने की चाह और दो पीढ़ियों के अंतर की वजह से जहां अब तक अभिभावकों के साथ संबंधों में खटास देखी जा रही थी. वहां अब वैवाहिक संबंधों के बिगड़ते हालातों और आत्म-संतुष्टि की अत्याधिक चाह की नुमाईश भी खुले आम की जाने लगी हैं.


ऑस्ट्रेलिया की एक वेबसाईट की बात मानें तो वह यह दावा करती है कि अगर आप विवाह के बाद आपके निजी जीवन में रोमांस समाप्त हो गया हैं, या आप अपने पार्टनर से संतुष्ट नहीं हैं, तो यह वेबसाईट आपके बोरिंग और निरस जीवन को एक खुशहाल और उत्तेजक जीवन में तब्दील कर सकती हैं. यह वेबसाईट ना सिर्फ आपको विवाहेत्तर संबंध बनाने में मदद करेगी बल्कि अगर किसी कारण आप एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर नहीं बना पाते या वह सफल नहीं हो पाते तो पूरे पैसे भी वापस करने की योजना का इसमें उल्लेख किया गया हैं. यद्यपि इस वेबसाईट की स्थापना 2001 में ही हो गई थी, काम ना होने पर पैसा वापस करने जैसी योजना का निर्धारण अभी शुरु किया गया है.


वैवाहिक संबंधों की नियति और पति-पत्नी की पारस्परिक भावनाओं को गर्त में ढकेलती इस स्कीम को और अधिक आकर्षक और उत्सुकता का केन्द्र बनाने के लिए ‘एश्ले मैडीसन डॉट कॉम’ नामक इस वेबसाईट के संस्थापक ने एक बड़ा अजीब नारा भी दिया है ‘जिन्दगी छोटी है ‘प्रेम-संबंध बनाएं’. इसके अलावा ग्राहकों के नाम, उनकी कोई भी जानकारी को गुप्त रखकर उन्हें पूर्ण सुरक्षा देने का भी वायदा किया हैं.


यह वेबसाईट इस तथ्य का ज्वलंत उदाहरण है कि पैसे के मोह में व्यक्ति कुछ भी कर सकता हैं. दूसरों की भावनाओं से खिलवाड़ करना हो या कोई गलत काम, वह पैसे के महत्व के आगे सब कुछ भूल जाता हैं. ऐसी वेबसाईटों के मद्देनजर हम यह अंदाजा लगा सकते हैं कि अब संबंधों, भावनाओं और प्रेम जैसी चीजे बस मनोरंजन का एक साधन बन गई हैं जिनसे मन भर जाने पर दूरी बना लेना ही फायदेमंद होता हैं. लगभग अस्सी लाख लोग इस वेबसाईट के ग्राहक हैं. इसका परिष्कृत अर्थ यह है कि यह वेबसाईट दुनियाभर के अस्सी लाख लोगों के वैवाहिक जीवन को अपना शिकार बना चुकी हैं. लाखों लोगों के घर बर्बाद कर चुकी हैं. हालांकि इसके संस्थापक ने स्वयं यह माना है कि उसके विवाह को आठ वर्ष हो गए हैं. और अगर कभी उसे यह पता चला कि उसकी पत्नी ने उसे धोखा दिया हैं, तो वह बुरी तरह टूट जाएगा. लेकिन उसे इस वेबसाईट का विचार अच्छा और नया लगा और पैसा भी अच्छा मिल सकता था, इसीलिए उसने इस वेबसाईट की शुरुआत की.


ऐसी वेबसाईटों का विदेशों में प्रचलन और लोकप्रियता यह स्पष्ट करता है कि पाश्चात्य देश चाहे कितनी ही प्रगति कर लें,खुद को एक आदर्श के रूप में भारत जैसे अनेक प्रगतिशील राष्टों के सामने प्रस्तुत कर लें, सच तो यह है कि रिश्तों में आत्मीयता, समर्पण और प्रतिबद्धता के क्षेत्र में वह बहुत उदासीन और पिछड़े हुए हैं. वहां एक बाजार है,  जहां उन्हें दिखाना है रिश्तों के मामले में वह कितने गिरे हुए या अपमानित हो सकते हैं.


extra marital affairवैसे ऐसी वेबसाईटों का विदेशों में प्रचलन कोई हैरान कर देने वाली बात प्रतीत नहीं होती. विदेशों में तो विवाह के बाद भी प्रेम-प्रसंगों को वहां के लोगों के आधुनिक जीवनशैली और व्यापक मानसिकता की ही पहचान माना जाता हैं. लेकिन भारत में जहां आधुनिक होने की आड़ में ऐसे किसी भी संबंध को जायज नहीं ठहराया जा सकता जो वैवाहिक जीवन में दरार डालने का काम करें. वहां ऐसी वेबसाईटों और लुभावनी स्कीमों की भी कोई आवश्यक्ता नहीं हैं. क्योंकि आज भी भारत में रिश्तों मे गंभीरता और संजीदगी में कमी को प्रमुख रूप से नहीं देखा जाता. हां इस बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता कि सभी वैवाहिक जोड़े एक दूसरे के प्रति समर्पित ही होते हैं, लेकिन हम उन लोगों के आधार पर भारतीय पारिवारों की मजबूती को नहीं आंक सकतें. यहां अभी तक रिश्तों का सरेआम प्रदर्शन और व्यक्तिगत जीवन की नुमाईश करने का प्रचलन अभी तक नहीं हुआ हैं. शायद इसीलिए दुनियांभर में अपने पांव पसार चुकी यह वेबसाईट भारत में उपलब्ध नहीं हैं.


वैवाहिक जोड़ों में मनमुटाव होना कोई नई बात नहीं हैं. ऐसा भी नहीं हैं कि भारतीय परिदृश्य में वैवाहिक संबंधों में पति-पत्नी हमेशा ही प्रेम से ही रहते हैं, या उनके बीच कब ही कोई परेशानी नहीं आती. लेकिन फिर भी ऐसी वेबसाईटे भारत में सफल नहीं हो सकती इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि विदेशों की अपेक्षा भारत में पारिवारिक एकता और मजबूती को ज्यादा महत्व दिया जाता है. आज भले ही एकल परिवारों की संरचना होने लगी हों, लेकिन अभिभावकों और परिवार के बड़े-बुजुर्गों के हस्तक्षेप की अवहेलना करना हमारे भारत की परंपरा नहीं है. मनमुटाव और अनबन की परिस्थितियों में पारिवारिकगण उन्हें समझा लेते हैं. इसके अलावा पति-पत्नी भी इस बात को समझते है कि उनके द्वारा किए गए गलत कामों कासबसे ज्यादा असर उनके बच्चों पर पड़ेगा. अपने बच्चों के उज्जवल और सुखद भविष्य को प्राथमिकता देते हुए वे विवाहेत्तर संबंध बनाने को तरजीह नहीं देते. जबकि विदेशों में बच्चों के प्रति अभिभावकों की जवाबदेही और उत्तरदायित्व का कोई औचित्य ही नहीं हैं. इसीलिए पति हो या पत्नी वे केवल अपनी खुशियों और अपेक्षाओं को ही प्राथमिकता देते हैं.


आमतौर पर यह भी देखा जाता है कि विदेशों में भावनात्मक लगाव से कहीं अधिक व्यक्ति शारीरिक संबंधों को अधिक महत्व देते हैं. और जब अपने साथी से मोह समाप्त हो जाता है तो वे अपने संबंध से इतर कोई आकर्षक व्यक्तित्व को तलाशने लगते हैं. आंकड़ों पर गौर करें तो यह भी स्पष्ट हो जाता है कि विदेशों में तलाक की अधिकतर वजह विवाहेत्तर संबंध और साथी में दिलचस्पी का कम होना ही हैं.

हमारा परंपरागत भारतीय समाज जहां विवाह को एक संस्थान नहीं धार्मिक और सामाजिक तौर पर उत्कृष्ट कर्म का दर्जा दिया जाता हैं. और केवल विवाह संस्कार के बाद ही किसी महिला और पुरुष के परस्पर संबंध को सम्मान दिया जाता हैं. वह कभी भी विवाहेत्तर संबंधों को जायज नहीं ठहरा सकता. और ना ही कभी संबंधों का मखौल बनाने वाली ऐसी वेबसाईटों को शरण दे सकता हैं. हालांकि भारतीय समाज मौलिक रूप से गृहणशील राष्ट्र हैं. और अपने इस स्वभाव का परिचय वह यदा-कदा देता ही रहता हैं. विदेशों के प्रभाव में आकर वह अपने भीतर परिवर्तन लाने में गुरेज नहीं करता. विदेशी लोगों की जीवनशैली को अपना कर वह स्वयं को मॉडर्न बनाने के लिए कुछ भी करने को तत्पर रहता हैं. ऐसे में हम स्पष्ट तौर पर यह नहीं कह सकते कि ऐसी वेबसाईटें आधुनिकता की ओर अग्रसर भारतीयों को आकर्षित नहीं करेंगी या उनके मस्तिष्क में जगह नहीं बना पाएंगी.


लेकिन हमें यह बात समझनी चाहिए कि हम विदेशी नहीं हैं. हम कितने ही मॉडर्न क्यों ना हो जाए, हम मूल रूप से एक ऐसी राष्ट की पहचान है जो संस्कृतियों और पंपराओं, अपनी मान्यताओं को अपनी विरासत, संबंधों को अपनी आत्मा मानता हैं. विदेशों से प्रेरणा लें, भारतीय अपने खाने-पीने, कपड़े पहनने के सलीके में परिवर्तन ला रहें हों. लेकिन हमें इस बात को कभी नहीं भूलना चाहिए कि आपसी संबंध, रोज-रोज बदले जाने वाले कपड़ों की भांति नहीं हैं. हमारा जीवन हमारे संबंधों के बिना अधुरा हैं, पति-पत्नी आज भी एक दूसरे के पूरक हैं. पति के जीवन में पत्नी का स्थान कोई नहीं ले सकता. दांपत्य की गाड़ी को चलाने की जिम्मेदारी पति-पत्नी दोनों की समान रूप से बनती हैं. और दोनों को ही अपने संबंध के प्रति ईमानदार और प्रतिबद्ध होना चाहिए. हम इस तथ्य को नहीं नकार सकते कि व्यक्तिगत जीवन में व्याप्त खुशहाली और मधुरता पर ही जीवन की असली खुशी समाहित हैं.


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