Menu
blogid : 5462 postid : 145

अगर धर्म-निर्पेक्ष ना कहलाते तो शायद हालात बेहतर होते!!

सरोकार
सरोकार
  • 50 Posts
  • 1630 Comments

secularismभारत एक धर्म-निर्पेक्ष राष्ट्र है. यहां ना तो किसी धर्म को विशेष महत्व दिया है और ना ही पंथ के आधार पर किसी भी प्रकार का कोई भेद-भाव किया जाता है. भारत के धर्म-निर्पेक्ष ढ़ांचे का महत्व और उसकी प्रमुखता हम इसी बात से समझ सकते है कि हिंदू बहुमत होने के बावजूद यहां अल्पसंखयों को विकसित करने और उन्हें मुख्यधारा में शामिल करने के लिए हर संभव प्रयत्न किया जाते हैं.


आजादी के दौरान अंग्रेजों ने भारत को ऐसे मुकाम पर ला खड़ा किया था जब अन्य धर्मों के लोगों के प्रति आक्रोश और घृणा जैसी भावनाएं प्रबल रूप से अवतरित होने लगी थी. हालात इतने खराब हो गए थे कि अलग होने के अलावा और कोई चारा ही नहीं दिखाई दे रहा था. मुसलमानों ने अपने लिए एक अलग राष्ट्र की मांग रख दी जिसे ना चहते हुए भी पूरा करना पड़ा.जिसके परिणामस्वरूप भारत को विभाजन का दंश झेलना पड़ा. आज का पाकिस्तान कल के भारत का ही एक अंग है.


क्योंकि पाकिस्तान का निर्माण ही इस्लाम धर्म को मानने वालों के लिए हुआ था इसीलिए स्वाभाविक यह स्वाभाविक था कि वहां इस्लाम के अलावा किसी भी धर्म को स्वीकार नहीं किया जाएगा. लेकिन भारत, जहां धर्म को नागरिकों का निजी मसला मसले से ज्यादा कुछ नहीं समझा गया, में किसी धर्म को प्रमुखता मिलना मुश्किल ही था. इसी सिद्धांत पर चलते हुए संविधान सभा ने भारत को ऐसे राष्ट्र के रूप में पहचान दिलवाने का निर्णय किया जो सभी धर्मों के लिए अपनी बांहे खोले रहेगा. सभी धर्मावलंबियों को अपने धर्म का पालन करने और बेहिचक अपने नियमों के अनुसार चलने का अधिकार भी दिया गया.


भारत की यह छवि देखकर कई बार हम खुद पर गुमान कर बैठते हैं. हमें खुद पर गर्व होने लगता है कि हम एक ऐसे ईमानदार राष्ट्र का हिस्सा है जो हर कदम पर अपने उदार और सहनशील स्वभाव का परिचय देता है. ऐसा देश जहां सभी धर्मों को समान आदर और सम्मान की नजर से देखा जाता है.


लेकिन अगर हम भारत समेत संपूर्ण वैश्विक परिदृश्य और उसमें हिंदूओं की स्थिति का आंकलन करें तो निश्चित रूप से भारत की यह धर्म-निर्पेक्ष छवि ही सभी समस्याओं की जड़ मालूम पड़ती है.


भारत में रहने वाले सभी लोग इस बात से इत्तेफाक रखते होंगे कि भले ही कुछ समय पहले तक धर्म का राजनीति से कोई लेना-देना ना हों लेकिन अब जिस राजनीति के स्वरूप को हम देख रहे हैं उसमें धर्म एक मुख्य और प्रभावी कारक बन गया है. राजनीति पर धर्म अब पूरी तरह हावी हो गया है. हिंदू बहुल्य राष्ट्र होने के बावजूद यहां हिंदूओं की स्थिति दयनीय बनती जा रही है. वोट की राजनीति के सिद्धांतों पर अमल करने के कारण हिंदूओं के साथ होने वाला भेद-भाव अब किसी से छुपा नहीं है. दब-कुचले और पिछड़ेपन की दुहाई देते हुए अन्य धर्मावलांबियों के साथ विशेष व्यवहार किया जाता है. जहां अल्पसंख्यकों को नौकरियों और अकादमिक स्तर पर आरक्षण मिलता है वहीं सांप्रादायिक हिंसा जैसे हालातों में हिंदूओं को ही दोषी ठहराया जाता है और अल्पसंख्यकों के साथ पूरी सांत्वना रखी जाती हैं. अपने वोट बैंक को दुरुस्त रखने के लिए अन्य धर्मों के लोगों को ललचाया जाना अब सामान्य घटनाक्रम बन गया है. लेकिन हम हम समानता और स्वतंत्रता का राग अलापते रहते हैं और इस छद्म धर्म-निर्पेक्षता के औचित्य और परिणामों पर ध्यान देना जरूरी नहीं समझतें.


धर्म-निर्पेक्षता हमारे लिए शांति स्थापित करने का मूल मंत्र बन चुका है. ऐसी शांति जिसका आधार ही हिंदूओं के हितों की अवहेलना करना है. क्योंकि अगर वह अपने ऊपर हुए अत्याचार का जवाब देते हैं तो उन्हें हिंसक मान लिया जाता है. अगर अपने अधिकारों की मांग करते हैं तो उन्हें शोषक की उपाधि से नवाजा जाता है. गोधरा कांड जिसे हम भारत के इतिहास की सबसे दुखद घटना मानते हैं इसी का सबसे बड़ा उदाहरण है.


उल्लेखनीय है कि जहां भारत में बहुमत होने के बावजूद हिंदूओं को दोयम दर्जा दिया जाता है वहीं अन्य देशों में, जहां हिंदू अल्पसंख्यां में है, तो जरूरत पड़ने पर उनसे जीने का मूलभूत अधिकार भी छीन लिया जाता है. ऐसे देश जिनका अपना एक विशिष्ट धर्म है वहां अन्य धर्मों के लोगों के साथ होने वाली हिंसा और जबरन धर्म परिवर्तन जैसी गतिविधियां मुख्य रूप से संचालित होती रहती हैं. ऐसे देशों में मुख्य रूप से हिंदूओं को ही निशाना बनाया जाता है. बांग्लादेश, पाकिस्तान जैसे मुसलमान राष्ट्रों के हालात किसी से छुपे नहीं है. पाकिस्तान में तो हालात इतने खराब है कि वहां हिंदूओं की उपस्थिति भी सहन नहीं की जाती. भारत विभाजन के समय वहीं बस गए हिंदूओं में से ज्यादातर ने तो अपना धर्म ही परिवर्तित कर लिया. ताकि किसी तरह वह अपनी जान बचा सकें. यहीं कारण है कि पाकिस्तान में बसर कर रहें ज्यादातर हिंदू परिवार आज भी भारत में बसने की ख्वाहिश रखते हैं.


वहीं दूसरी ओर बांग्लादेश है, जिसे पाकिस्तान से आजाद कराने में कितने ही हिंदू सैनिकों ने अपनी जान गंवा दीं. आज उसी बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू अपनी पहचान स्थापित करने के लिए तरस रहे हैं. कई वर्षों से वहां हिंदू विरोधी माहौल की नींव तैयार की जा रही हैं. हिंदूओं के पूजा स्थलों को तोड़ना, देवी-देवताओं की प्रतिमाओं का अपमान करना एक आम बात बन गई है. बाबरी मस्जिद विध्वंस के दौरान वहां हिंदूओं के साथ जो अमानवीय व्यवहार किया गया, उसके विषय में सुनकर ही रौंगटे खड़े हो जाते है. इतना ही नहीं आज भी बांग्लादेश में हिंदूओं को नौकरियों और मूलभूत अधिकारों से वंचित रखा गया है. बांग्लादेश में रह रहें हिंदुओं के सामने न सिर्फ अपनी धार्मिक आस्था को बचाए रखने की चुनौती है बल्कि उन्हें नरसंहार, अपहरण, हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार और सार्वजनिक तौर पर अपमान जैसी मुश्किलों का सामना भी करना पड़ रहा है.


यह हालात सिर्फ बांग्लादेश और पाकिस्तान का ही नहीं बल्कि अधिकांश मुसलमान राष्ट्र हिंदू विरोधी विचारधारा का ही अनुसरण कर रहे हैं. इन राष्टों के पढ़े-लिखे नौजवान हिंदूओं को अपना क्षत्रु समझते हैं, उनके दमन का एक भी मौका नहीं गंवातें.


लेकिन सबसे दुखद बात तो यह है कि भारत में सभी सुविधाएं और स्वतंत्रता उपलब्ध होने के बावजूद आज भी तथाकथित दमित और शोषित अल्पसंखयकों को यहीं लगता है कि भारत में उनके सामाजिक और राजनैतिक भेद-भाव होता है.


इन हालातों के मद्देनजर अगर किसी जागरुक मस्तिष्क में यह सवाल उठता है कि वैश्विक स्तर पर धर्म आधारित हिंसा और भेदभाव को देखते हुए भारत की धर्म-निर्पेक्षता का क्या औचित्य हैतो इसे कहां तक गलत कहां जाएगा? इससे बेहतर तो यह ही होगा कि सभी राष्ट्र अपने यहां बहुमत में रह रहे लोगों के हितों की रक्षा करें ताकि दूसरे धर्मावलंबियों के साथ भेदभाव क्यों हो रहा है इसके पीछे तर्क प्रस्तुत किया जा सकें.


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh