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क्या महिलाओं का स्वभाव ही है अधीन रहना ?

सरोकार
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happy coupleविभिन्न लोगों की रुचियां, स्वभाव और पसंद भिन्न-भिन्न होती हैं. कोई बहुत हंसमुख और मिलनसार होता है तो कोई थोड़े गंभीर स्वभाव का होता है. किसी को घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करना बहुत पसंद होता है तो किसी को घर पर अपने परिवार के साथ रहना बहुत भाता है. हम दोनों में से किसी को गलत नहीं कह सकते, क्योंकि यह उनका स्वभाव है और ऐसा करने में ही उन्हें खुशी मिलती है. गलत तो तब होगा जब आप किसी शांत स्वभाव वाले व्यक्ति को जबरन घुलने-मिलने के लिए विवश करें या घर में रहने वाले व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध बाहर काम करने के लिए भेज दें. निश्चित रूप से आपका ऐसा स्वभाव दूसरे व्यक्ति के लिए मानसिक और भावनात्मक अत्याचार से कम नहीं है. वजह चाहे कोई भी हो लेकिन अपनी इच्छा और स्वभाव के विरुद्ध जाकर कोई भी व्यक्ति खुश नहीं रह सकता.


जब समान सेक्स के लोगों के स्वभाव भी एक-दूसरे से अत्याधिक भिन्न होते हैं तो ऐसे में महिलाओं और पुरुषों जिन्हें प्रकृति ने एक-दूसरे के पूरक के रूप में प्रस्तुत किया है, के स्वभाव में अंतर होना स्वाभाविक है. महिला और पुरुष ना सिर्फ जैविक रूप से एक-दूसरे को पूरा करते हैं बल्कि एक-दूसरे के मानसिक और भावनात्मक पक्ष को भी संपूर्ण आधार देते हैं. जहां एक ओर महिलाएं भावुक होने के कारण दिल से ज्यादा काम लेती हैं, वहीं पुरुष कहीं ज्यादा तार्किक और व्यवहारिक होते हैं. वह दिल से ज्यादा दिमाग से काम लेते हैं. दोनों के स्वभाव कितने ही भिन्न क्यों न हों, लेकिन यही भिन्न-भिन्न स्वभाव उन्हें एक दूसरे का पूरक बनाता है.


महिलाओं और पुरुषों के विषय में एक मुख्य बात यह है कि जहां स्वाभाविक रूप से महिला, पुरुष के संरक्षण में ही खुद को सुरक्षित और सहज पाती है, वहीं दूसरी ओर पुरुष हमेशा नेतृत्व और मार्गदर्शक की भूमिका में रहता है. यहां तक कि परिवार भी उसके संरक्षण में ही खुद को सुरक्षित पाता है. लेकिन बदलते सामाजिक हालातों और आधुनिक होते परिदृश्य में महिलाओं को भी अपने स्वभाव के विरुद्ध जाने के लिए विवश किया जाने लगा है.


महिला सशक्तिकरण की बयार के तहत महिलाओं को पुरुषों के समान नेतृत्वकारी भूमिका में लाने और उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए कई प्रभावी प्रयास किए जा रहे हैं. इन्हीं प्रयासों के परिणामस्वरूप पहले जहां महिलाएं पुरुषों के संरक्षण में ही अपना जीवन व्यतीत करती थीं, पिता या पति के आदेशों का पालन करती और अपने पारिवारिक कर्तव्यों को निभाती थीं, आज वहीं महिलाएं घर संभालने के साथ-साथ अपने स्वतंत्र अस्तित्व की तलाश में दिन रात मेहनत भी कर रही हैं.


यूं तो नारीवाद का इतिहास बहुत पुराना है, लेकिन आधुनिक संचार माध्यम और बदलती मानसिकता के कारण महिलाओं के हितों और उनके अधिकारों के लिए अपनी आवाज बुलंद करने वाले तथाकथित नारीवादियों को बहुत जल्दी पहचान और नाम मिलने लगा है. यहां यह कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगी कि महिलाओं की स्थिति में होने वाले छोटे-बड़े परिवर्तनों में महिलावादियों ने एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है. आज हम लगभग हर उस क्षेत्र में जहां पहले पुरुषों का आधिपत्य समझा जाता था, महिलाओं को कड़ी मेहनत करते और शोहरत पाते देख सकते हैं.


भले ही ऐसे बदलते हालात ऊपरी तौर पर महिलाओं की परिमार्जित होती स्थिति दिखें, लेकिन वास्तविक तौर पर यह उनके साथ होते अत्याचार से कम और कुछ नहीं है. नेतृत्व करना महिलाओं का मौलिक स्वभाव ही नहीं है, ऐसे में अगर कोई उन्हें इस कार्य के लिए बाध्य करे तो निश्चित हैं कि यह उनके भावनात्मक पक्ष को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा.


सामान्य पारिवारिक परिस्थितियों में तो एक महिला का अपने पति पर निर्भर रहना आम बात है. हो सकता है कुछ लोग इसे रुढ़िवादी मानसिकता या निराधार परंपरा कहें, लेकिन हाल ही में लोकप्रिय होते रियलिटी कार्यक्रम बिग-बॉस की आधुनिक मानसिकता और आचरण वाली महिला प्रतिभागियों को देखकर भी यही लगता है कि महिलाएं चाहे किसी भी देश या परिवेश की हों कभी भी पुरुष से आगे चलकर या नेतृत्व कर सहज नहीं रह सकतीं. उनके लिए परिवार में पुरुष का नेतृत्व ही आदर्श है. बिग-बॉस में महिला प्रतिभागियों की संख्या पुरुषों से कहीं ज्यादा है. वह चाहतीं तो अपना गुट बना प्रतियोगिता के मुख्य केन्द्र में रह सकती थीं. लेकिन नहीं, उन्होंने पहले शक्ति कपूर को अपना नेता समझा और अब जब वहां दो गुट बन गए हैं तो भी उनके दलों के नेता पुरुष ही हैं. किसी भी महिला ने आगे बढ़कर अपना दल बनाने और नेतृत्व करने की पहल नहीं की, क्योंकि अगुवाई करना महिलाओं का स्वभाव ही नहीं है.


तथाकथित नारीवादियों, जिनका बस चले तो वे पत्नी से खाना बनवाने वाले पति को शूली पर लटका दें, को सिर्फ अपनी सार्थकता और उपयोगिता सिद्ध करने के लिए नए-नए मसले तलाशने होते हैं. जबकि वास्तविकता यह है कि महिलाएं स्वयं पुरुष के संरक्षण में रहने और अपने पारिवारिक दायित्वों की पूर्ति को ही सबसे ज्यादा महत्व देती हैं, और उन्हें इसी में खुशी भी मिलती है. मात्र अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए महिलाओं के इस मौलिक स्वभाव को नकारना कदापि सही नहीं कहा जाएगा. अगर पुरुष का स्वभाव नेतृत्व करना है और महिलाओं का संरक्षण में रहना है तो इसमें विरोध करने या अवेहलना करने की बात पूर्णत: बेमानी है.


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