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भोजन के स्थान पर परोसी गईं न्यूड महिलाएं !!

सरोकार
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प्लेट में रखे खाने को खाया जाता है तो क्या महिलाओं को परोसा जाना उनके मनचाहे उपभोग की ओर इशारा नहीं करता?



पिछले दिनों जानवरों के संरक्षण और उन्हें पर्यावरण में एक सुरक्षित स्थान दिलवाने के लिए काम कर रही पेटा यानि पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल नामक संस्था द्वारा विदेशी फुटबॉल टीम की महिला खिलाड़ियों और कुछ पेटा कार्यकर्ताओं के न्यूड विज्ञापन जारी किए गए हैं. वैसे तो इन विज्ञापनों से पहले भी पेटा द्वारा ऐसे कई फूहड़ और निरर्थक विज्ञापन जारी किए गए हैं जिनमें जानवरों के संरक्षण के प्रति कम और महिलाओं की नुमाइश के ऊपर ज्यादा ध्यान दिया गया है. लेकिन इस बार पेटा ने अश्लीलता की सारी हदें पार कर ली हैं.


peta new addमहिलाओं की दैहिक नुमाइश पेटा के इन प्रचारों और प्रदर्शनों का मुख्य हथियार बन गया है. जहां एक ओर सिडनी में पेटा द्वारा संचालित एंटी-फर अभियान के अंतर्गत महिलाओं को न्यूड पोज देने को कहा गया. वहीं स्पेन में शाकाहार के प्रति लोगों को आकर्षित करने के लिए एक जीवित न्यूड महिला को एक बड़ी सी खाने की प्लेट में खाद्य पदार्थ के रूप में लोगों के सामने परोसा गया. एक महिला कार्यकर्ता को ऐसे प्रदर्शन करते देख वहां से गुजरने वाले लोग दंग रह गए.


शाकाहार के प्रति रुझान उत्पन्न करने के लिए किए जा रहे ऐसे प्रचार भले ही लोगों के आकर्षण का केन्द्र बन रहे हों लेकिन महिलाओं की अस्मिता और उनके सम्मान की दृष्टि से ऐसे निकृष्ट प्रचार बेहद निंदात्मक हैं.


पेटा जानवरों को संरक्षित करने का दम भरता है लेकिन महिलाओं की सार्वजनिक छवि दूषित करने और उनके सम्मान के साथ खिलवाड़ करने में इस बार कोई कसर नहीं छोड़ी गई. प्लेट में रखे खाने को खाया जाता है तो क्या महिलाओं को परोसा जाना उनके मनचाहे उपभोग की ओर इशारा नहीं करता? ऐसे भद्दे प्रचार महिलाओं को भावनायुक्त जीवित प्राणी नहीं बल्कि बस एक भोग और विलास की वस्तु प्रदर्शित करते हैं. ऐसी वस्तु जिसका अपना कोई अस्तित्व नहीं है, उसका काम बस पुरुषों की तृष्णा और शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति करना है.


सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं को न्यूड कर लोगों को इससे ज्यादा और क्या संदेश दे सकते हैं कि हम जिन महिलाओं को समाज में समान अधिकार और मान-सम्मान दिलवाने की बात करते हैं वह तो बस एक भोग की वस्तु हैं जिनका उपयोग करना कोई अपराध नहीं है. हम तो बेवजह ही महिलाओं के साथ होते अत्याचारों और उनके शोषण को विकृत समाज की मानसिकता मानते हैं असल में तो यह आधुनिकता की पहचान है


पेटा का उद्देश्य जानवरों को बचाना है, लेकिन क्या ऐसे अमानवीय प्रचार जो साफतौर पर महिलाओं के शोषण और कुंठित मानसिकता को बढ़ावा देते हैं, सही कहे जा सकते हैं? हम खुद को आधुनिक कहते हैं. और इस कथन को सत्य करने की बेजोड़ कोशिशें भी करते हैं. यद्यपि आधुनिकता को ग्रहण करना गलत भी नहीं है लेकिन क्या आधुनिकता का अर्थ सार्वजनिक स्थानों पर खुले आम महिलाओं के देह का प्रदर्शन करना है?सबसे हैरानी की बात तो यह है कि स्वयं महिलाएं अपने इस रूप को लोगों को सामने प्रदर्शित कर खुद को इस नोबल कॉज का हिस्सा समझ रही हैं.


वैसे तो विदेशों में नग्नता और अश्लीलता कोई नई बात नहीं है. हो सकता है वहां के लोग इन सबके आदी भी हों. लेकिन जैसा कि हम विदेशी लोगों और वहां के तौर-तरीकों की नकल करना अपना अधिकार समझते हैं तो क्या इस बार भी ऐसा ही होगा?


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