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एक समय था जब घरों में चिट्ठियां और गलियों में डाकिये का आना-जाना लगा ही रहता था. लोग अपने सुख-दुख अपने परिचितों के साथ बांटने के लिए इतने ज्यादा उत्सुक रहते थे कि हर छोटी-बड़ी सूचना उन तक पहुंचाने का प्रयत्न किया जाता था और चिट्ठियां सफलतापूर्वक उनकी भावनाओं को अन्य लोगों तक पहुंचाती थीं. चिट्ठियों की अहमियत इसी बात से समझी जा सकती है कि जिन लोगों को पता होता था की उनका खत आने वाला है वह तो पूरा दिन डाकिये का इंतजार करते ही थे लेकिन जिन्हें अपनी चिट्ठी आने की कोई उम्मीद नहीं होती थी वह भी गली में आने वाले डाकिये से अपना पत्र देखने को कहते थे. क्योंकि चिट्ठियां ही उन्हें यह अहसास करवाती थीं कि दुनियां में कोई है जो उन्हें याद करता है. उल्लेखनीय है कि जिन घरों में डाकिया सबसे ज्यादा खत डालता था उस घर के लोग प्रतिष्ठा और सम्मान के पात्र माने जाते थे. डाकिये भी अपनी जिम्मेदारी बड़ी ईमानदारी के साथ निभाते थे. वह कभी भी किसी का खत ना तो खुद पढ़ते थे और ना ही किसी को पढ़ने देते थे. खास बात ये थी कि चाहे अंतरदेशीय पत्र कार्ड हो या पोस्ट कार्ड, कई लोग उसके ऊपर “पत्र मकान अंदर मिले” लिखते थे जिससे उसकी गोपनीयता सुरक्षित रहे. डाकिये इस वाक्य के महत्व से पूर्णतया परिचित होते थे इसलिए वह किसी भी हालत में उक्त वाक्य लिखे पत्र की गोपनीयता संभालने की भरसक कोशिश करते थे.
लेकिन अब यह बीता जमाना कहानियों का रूप ले चुका है. क्योंकि अब इन चिट्ठियों और ग्रीटिंग कार्ड्स की जगह एसएमएस और ई-मेल ने ले ली है. माता-पिता अकसर अपने बच्चों को इन्हीं चिट्ठियों से जुड़े कुछ मजेदार किस्से सुनाते हैं, लेकिन टेक्नोलॉजी के दीवाने उनके बच्चे कभी उन भावनाओं को नहीं समझ सकते. उन्हें यह सब ऑउट डेटेड लगता है. तकनीकों ने जहां व्यक्ति के जीवन को सरल बनाया है वहीं आपसी भावनाओं के लिए यह तकनीकें किसी अभिशाप से कम साबित नहीं हुईं. आजकल लोग फोन पर बात कर खुश हो जाते हैं और अगर बात ना हुई तो बस अपनी खुशहाली का एक मैसेज अपने अभिभावकों या दोस्तों तक पहुंचा देते हैं.
हाल ही में नए साल की शुभकामना देते हुए मेरी एक दोस्त ने मुझे एसएमएस किया लेकिन उसने शायद एसएमएस भेजते समय उस मैसेज पर ध्यान ही नहीं दिया, इसीलिए 1 तारीख पर न्यू ईयर विश करने के बावजूद उसके मैसेज में हैप्पी न्यू इयर इन एडवांस लिखा हुआ था. इस मैसेज ने मुझे बचपन में खरीदे गए ग्रीटिंग कार्ड्स याद दिला दिए. जब भी किसी दोस्त या संबंधी को जन्मदिन या दिवाली पर कार्ड देना होता था तब उस एक कार्ड के लिए पूरा बाजार खंगाला जाता था. ताकि सबसे अधिक सुंदर कार्ड हमारा ही हो. कार्ड खरीदने के बाद जब उस कार्ड को पोस्ट करने की बारी आती थी तो हमेशा यह ध्यान दिया जाता था कि कार्ड सही समय पर सही हाथों में पड़े. इसके लिए कितनी भी मेहनत या पैसे खर्च करने पड़े लेकिन कार्ड अच्छा और समय पर पहुंचना ही हमारी प्राथमिकता होती थी. कार्ड खरीदने और उसे पोस्ट करने में की गई मेहनत स्वयं हमारी भावनाएं व्यक्त कर देती थी. वहीं दूसरा व्यक्ति भी उस कार्ड की उतनी ही कद्र करता था क्योंकि वह स्वयं उस कार्ड की अहमियत समझता था.
जब बाजार में नए-नए आर्चीज के कार्ड आए थे तब शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा हो जो इन्हें खरीदने और प्रियजनों को भेंट करने की कोशिश ना करता हो. लेकिन अब मोबाइल पर मैसेज या मेल में ई-कार्ड्स आते हैं जिसे ना तो भेजने वाला पढ़ता है और ना ही जिसे मिलता है वह उसे पढ़ने में कोई दिलचस्पी दिखाता है. बस बिना देखे फॉरवर्ड कर दिया जाता है. आजकल यह ग्रीटिंग कार्ड्स या तो मदर्स डे, फादर्स डे आदि जैसे दिनों की शान बढ़ाते हैं या फिर प्रेमी-प्रेमिकाओं के काम आते हैं.
इंटरनेट के इस दौर में चिट्ठियों के लेन-देन की कल्पना करना पूर्णत: बेमानी है लेकिन अधिकांश परिवारों ने कोई ना कोई अमनोल और महत्वपूर्ण चिट्ठी जरूर संभाल कर रखी होगी.
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