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रामदेव के मुंह पर लोकतंत्र की स्याही – निहितार्थ

सरोकार
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ink attackराजनीति में आने की मंशा लिए रामदेव बाबा ने काले धन को वापिस लाने की मुहिम को हवा तो दे दी, लेकिन वह अपने आह्वान पर कायम नहीं रह पाए और ना ही जनता के विश्वास को ही जीत पाए. रणनीति बनाने की तो बात छोड़ ही दीजिए जबसे मीडिया में उनके साड़ी पहनकर अनशन स्थल से भाग जाने की खबर आई है तब से वह कहां गायब हो गए किसी को कुछ नहीं पता. अपने समर्थकों को पुलिस के हवाले छोड़ कर रामदेव के वहां से भाग जाने के कारण उनकी कायरता और निष्ठा की पोल सबके सामने खुल गई.


हालांकि हमें बहुत दिनों तक उनके दुर्लभ दर्शनों से वंचित रहना पड़ा लेकिन शायद उनका गायब रहना ही उनके लिए अच्छा था. क्योंकि जैसे ही उन्होंने एक बार फिर लोकप्रियता बटोरने की कोशिश की, उन्हें एक बार फिर जनता की बेरुखी का सामना करना पड़ा. हाल ही में एक प्रेस कांफ्रेंस में एक व्यक्ति ने रामदेव के मुंह पर काली स्याही फेंककर अपना विरोध जाहिर किया. रामदेव पर फेंकी गई यह स्याही भले ही किसी सिरफिरे का काम बताया जा रहा हो लेकिन निश्चित रूप से यह उसी जनता की आवाज है जिसे हमेशा से ही दबा-कुचला बना कर रखा गया है.


काली स्याही से रंगा रामदेव का चेहरा साफ प्रदर्शित कर रहा था कि अब जनता ना तो भ्रष्टाचारी सरकार पर विश्वास करती है और ना ही तथाकथित तौर पर सरकार का विरोध करने वाले बहरूपियों पर.


स्वयं रामदेव और उनके अंधे भक्त भले ही इस हमले को विपरीत उद्देश्य वाले लोगों की साजिश या कोई गहरा षड्यंत्र करार दे रहे हों लेकिन वास्तविकता यह है कि जनता अब और अधिक विश्वासघात सहन नहीं कर सकती. उसे अब आए दिन सरकार या तथाकथित समाज सुधारकों द्वारा दिए जाने नए-नए वायदों से छुटकारा चाहिए.


वैए तो जनता की आवाज को नकारना या उन्हें दबा देना हमारे गणतंत्र की पहचान रही है, इसी कड़ी में रामदेव के समर्थकों द्वारा उस व्यक्ति की सरेआम पिटाई करना लोकतंत्र को चुप कराने की कोशिश का एक ज्वलंत उदाहरण है. खुद को जनता का मसीहा कहलवाने वाले रामदेव ने अपनी महानता का परिचय देते हुए अपने हमलावर को माफ कर देने का ढोंग तो रचा दिया लेकिन उनकी माफी अब कोई मायने नहीं रखती. उनके चेहरे पर पड़ी काली स्याही के धब्बे परिवर्तन की मांग उठा रहे हैं. अब वे लंबे समय से होने वाले अन्याय और अत्याचारों का जवाब चाहते हैं.


भारत की जनता को पहले कुर्सी पर बैठे भ्रष्टाचारियों से निपटना पड़ता था लेकिन अब उनकी लड़ाई ऐसे बहरूपियों से भी है जो अपने मनगढ़ंत वायदों के साथ जनता को असहाय छोड़कर खुद मुनाफे और लोकप्रियता की रोटियां सेंकते हैं.


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