Menu
blogid : 5462 postid : 211

क्या मिल सकता है राहुल गांधी से बेहतर प्रधानमंत्री?

सरोकार
सरोकार
  • 50 Posts
  • 1630 Comments

indiaभारत का अगला प्रधानमंत्री कौन और किस पार्टी का होगा यह एक ऐसा प्रश्न है जिसके उत्तर को सार्वजनिक सहमति मिलना असंभव ही है. आज लगभग हर पार्टी का मुख्य चेहरा स्वयं को भावी प्रधानमंत्री के रूप में देख रहा है. क्षेत्रिय पार्टियों से लेकर राष्ट्रीय पार्टीयों के मुखिया तक खुद को एक बेहतर दावेदार के रूप में प्रचारित कर रहे हैं. आज भारत को एक ऐसे प्रधानमंत्री की जरूरत है जो स्वयं के शक्तिशाली और निर्णय लेने की काबिलियत रखता हो. जो किसी क्षेत्र विशेष में नहीं बल्कि एक प्रभावकारी राष्ट्रीय पहचान वाला हो.


निश्चित तौर पर यह सभी खूबियां भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी में है. प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय नेता के तौर पर उनकी तुलना किसी अन्य चेहरे से करना निरर्थक और बेमानी है. वह एक सशक्त और विवेकशील नेता है. लेकिन अब उनकी आयु इस बात की गवाही नहीं देती कि उन्हें प्रधानमंत्री जैसा ओहदा सौंपा जाएं. लगभग 86 की उम्र में अगर वह प्रधानमंत्री बनते भी है तो यह स्वयं उनके साथ नाइंसाफी होगी.


आयु के इस मुकाम पर पहुंचने के बाद हो सकता है उनका स्वास्थ्य उन्हें विवादों और चिंताओं में पड़ने की अनुमति ना दें. क्या आप अपने घर के इतने वृद्ध व्यक्ति को चिंताओं से ग्रसित या विवादों के उलझे हुए देखना पसंद करेंगे? शायद नहीं, यहीं कारण है कि प्रधानमंत्री के पद के लिए लाल कृष्ण आडवाणी, जो निर्विवाद रूप से एक बेहतर उम्मीदवार साबित हो सकते थे, को यह पद सौंपना स्वयं उनके साथ अन्याय होगा.


वहीं अगर बसपा, सपा और अन्य क्षेत्रिय दलों की बात करें तो हो सकता है उन सभी के पास मुलायम सिंह यादव, मायावति जैसा मुखिया हो लेकिन क्या आप उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में देखना पसंद कर सकते हैं? क्या प्रगति की राह पर चलने वाले भारत एक ऐसे प्रधानमंत्री का बोझ उठा सकता है जिसकी लगभग सभी नीतियां जाति, आरक्षण और विभाजन पर आधारित हों? क्या हमें एक ऐसे प्रतिनिधित्व की जरूरत है जो अखण्डित भारत के सपने को पूरी तरह ध्वस्त कर भारत के भीतर ही विभाजन के बीज बोने पर अमादा हो जाएं?


भाजपा और एनडीए की ओर से नितिश कुमार और नरेंद्र मोदी जैसे प्रख्यात नेताओं के नाम भी प्रधानमंत्री पद के लिए सामने आते रहे हैं, लेकिन एक कटु सत्य यह भी है कि जब भी इन नेताओं ने खुद को प्रधानमंत्री पद की रेस में शामिल करने की कोशिश की है, किसी बाहरी व्यक्ति या दल ने नहीं बल्कि पार्टी के अंदरूनी नेताओं ने ही स्वयं उनके नाम को नकार दिया है. ऐसे में यह स्पष्ट हो जाता है कि अगर इन नेताओं को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया तो यह पार्टी के भीतर ही फूट और विभाजन का काम करेगा.


हमें एक ऐसे प्रधानमंत्री की जरूरत है जिसे ना तो अपनी पार्टी जी बेरुखी का सामना करना पड़े और वह सर्वायामी योग्यता भी रखता हो. ऐसे में कांग़्रेस, जो चरणवंदना में पूर्ण विश्वास रखती है, ही एक ऐसी पार्टी मानी जाती है जिसने हमेशा अपने नेताओं और पार्टी के लोगों को एक साथ रखने का काम किया है. इतने बड़े गठबंधन होने के बावजूद अगर पार्टी में किसी भी प्रकार की फूट उत्पन्न होती भी है तो उस मसले को बड़ी समझदारी से हल कर दिया जाता है.


rahul gandhiयही वजह है कि अगर कांग्रेस पार्टी के महासचिव राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के लिये देश के प्रबल दावेदार बन कर उभर रहे हैं. एक तो वह देश के सबसे मजबूत राजनैतिक दल के महासचिव है और दूसरी ओर उन्होंने पिछले कुछ समय के भीतर ही अपनी व्यक्तिगत छवि को इतना अधिक परिष्कृत कर दिया है कि अब जब भी कभी प्रधानमंत्री के चुनाव की बात आती है तो राहुल गांधी का नाम स्वत: ही जहन में आ जाता है. आए भी क्यों ना, गांधी परिवार के सुपुत्र राहुल गांधी, जिनका सारा जीवन राजनीति के उतर-चढ़ावों में ही बीता है, अब एक परिपक्व नेता के रूप में सामने आने लगे हैं.


आज जब भ्रष्टाचार और महंगाई को लेकर कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का विरोध हो रहा है, ऐसे में राहुल ने बड़ी समझदारी के साथ युवाओं को तो अपनी ओर खींच ही लिया है साथ ही गांव-गांव जाकर उन्होंने लोगों से एक भावनात्मक रिश्ता भी कायम किया है. अभी कुछ समय पहले राहुल गांधी ने उत्तर-प्रदेश से महाराष्ट्र जाने वाले लोगों को कुछ अपशब्द कहें थें. उनके इस बयान की चौतरफा निंदा भी हुई थी. निश्चित ही उनका कथन अशोभनीय था, लेकिन क्या हम आज भी सदियों से उसी लॉलीपॉप के सहारे जीना चाहते हैं जो हमें कई बरसों से दिखाई जा रही है. राहुल गांधी के शब्द कटु अवश्य थे लेकिन सत्य थे. अगर उनके कथन को सकारात्मक बयानों के साथ ग्रहण किया जाता तो शायद इतना बवाल ना मचता. पता नहीं क्यों हम आज भी सच सुनना कुछ ज्यादा पसंद नहीं करतें. सच सुनते ही हम भड़क जाते हैं और अपनी कमियों पर काम करने की बजाय दूसरे लोगों पर आक्षेप लगाने लगते हैं.


हां, हम इस बात से भी इंकार नहीं कर सकतें कि समय-समय पर कांग्रेस पर भी कई तरह के आरोप लगते रहे हैं लेकिन उन्हें किसी ना किसी रूप से साबित नहीं किया जा सका. इसीलिए उनके पीछे की हकीकत क्या है यह कहना मुश्किल है. एक ऐसे परिवार से संबंधित है जिनके पास ना तो अपना कोई बैंक बेलेंस है और ना ही कोई निजी आवास, यहां तक ही उनका पुश्तैनी आवास आनंद भवन को भी वर्ष 1930 में कांग्रेस दल को अर्पित कर दिया गया था.


पूरी तरह राजनीति को समर्पित गांधी परिवार, जो अब परिपक्व राजनीति की पहचान बन चुका है, उसके प्रतिनिधी को प्रधानमंत्री पद प्रदान ना किया जाए तो क्या आज की तारीख में उससे बेहतर कोई उम्मीदवार है?


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to GaganCancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh