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भारतीय राजनीति की पहचान बन चुकी, देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस पर हमेशा वंशवाद को बढ़ावा देने जैसे कई गंभीर आरोप लगते रहे हैं. प्राय: यही सुनने को मिलता है कि कांग्रेस दल, जो अब गांधी परिवार का ही दूसरा नाम बन गया है, में योग्य नेताओं की उपेक्षा कर केवल पारिवारिक और करीबी लोगों को ही महत्व दिया जाता है. जिसके परिणामस्वरूप लगभग सारे प्रभावपूर्ण ओहदे उनके ही अधिकार क्षेत्र में रखे जाते हैं. खैर वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए हम कांग्रेस पर लगने वाली आरोपों को नजरअंदाज नहीं कर सकतें, क्योंकि हमारे सामने कई ऐसे उदाहरण है जो कांग्रेस दल में व्याप्त वंशवाद की पुष्टि करते हैं.
लेकिन अब वंशवाद का अधिकार क्षेत्र केवल कांग्रेस तक ही सीमित नहीं रह गया है. हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में बीएसपी की नीतियों से उत्तर-प्रदेश की जनता में व्याप्त असंतोष के कारण समाजवादी पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ अपनी सरकार बनाने में सफल रही. सपा की जीत के साथ ही यह भी निश्चित हो गया था कि पार्टी के सबसे अनुभवी और परिपक्व नेता मुलायम सिंह यादव, जिन्हें पार्टी कार्यकर्ता और सपा के करीबी लोग नेताजी कहकर पुकारते हैं, निर्विवाद रूप से प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए जाएंगे. परंतु जब मुख्यमंत्री चुनने की बारी आई तो उन्होंने कांग्रेस की नीति अपनाते हुए राजनीति के क्षेत्र में अपरिपक्व बेटे को पार्टी की कमान सौंप कर यह साबित कर दिया कि भारतीय राजनीति में वंशवाद की जड़े बेहद मजबूत होती जा रही हैं.
मुलायम सिंह यादव और पार्टी के अन्य अनुभवी नेताओं का कहना है कि अब क्षेत्र को एक युवा चेहरे की आवश्यकता है इसीलिए उत्तर-प्रदेश और समाजवादी पार्टी दोनों में ही युवाओं को अवसर दिया जाना चाहिए. यूं तो परिस्थितियों के हिसाब से देखा जाए तो समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का यह निर्णय बिल्कुल सही था. लेकिन जब युवा चेहरे को सत्ता सौंपने की बात आई तो सभी ने अपरिपक्व लेकिन नेताजी के बेटे अखिलेश यादव को ही उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में योग्य समझा. पार्टी का यह निर्णय किसी भी रूप में युक्तिसंगत नहीं कहा जा सकता.
अभी तक अखिलेश यादव ने मुख्य राजनीति के क्षेत्र में कोई खास योगदान नहीं रहा है इसीलिए वह मुख्यमंत्री बनने के बाद क्या कमाल दिखा पाएंगे इस पर अभी से कोई राय बना लेना सही नहीं कहा जाएगा.
विकास और प्रगति की उम्मीद की आस लगाए उत्तर-प्रदेश की जनता बहुत लंबे समय से मायावति के नेतृत्व वाली बीएसपी की सरकार तथाकथित सोशल इनंजीनियरिंग नीतियों का दंश झेल रही है. ऐसे में स्वाभाविक है कि प्रदेश को एक अनुभवी और राजनैतिक दृष्टि से परिपक्व मुख्यमंत्री की जरूरत है, लेकिन इन सभी अपेक्षाओं पर लगाम लगाते हुए मुलायम सिंह यादव ने अपने पुत्र अखिलेश यादव को उत्तर-प्रदेश का भावी कर्ता-धर्ता नियुक्त कर दिया. उनका यह निर्णय साफ प्रमाणित करता है कि अब जातिवाद के अलावा भारतीय राजनीति में वंशवाद भी अपने बढ़ते चरण में है. ऐसे में भाई-भतीजावाद जैसे आरोप केवल कांग्रेस के सिर ही नहीं मड़ सकतें क्योंकि अब उसकी देखा-देखी अन्य पार्टियां भी वंशवाद, जिसका निरंतर बढ़ता स्वरूप भारतीय राजनीति के लिए घातक सिद्ध हो सकता है, को बड़ी आत्मीयता के साथ स्वीकार कर लिया है.
मुलायम सिंह यादव स्वयं कभी कांग्रेस का विरोध करते नहीं धकें, लेकिन जब कुर्सी की माया ने उन्हें जकड़ा तो उन्हें भी शायद कांग्रेस की वर्षों पुरानी नीति याद आ गई. मुलायम सिंह यादव ने यह निर्णय लिया कि इस बार उत्तर-प्रदेश की कमान किसी युवा को सौंपनी चाहिए. इससे वह प्रदेश के युवक़ओं को तो आकर्षित करेंगे ही साथ ही राजनीति में उनकी साख भी बढ़ जाएगी. वैसे भी अन्य किसी युवा को अवसर देने के स्थान पर घर के चिराग को कमान सौंप देना फायदे का सौदा ही है.
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