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ये कैसा फरमान है कि पत्नी को रोजाना छड़ी से मारो तभी वैवाहिक जीवन में सुख मिलेगा

सरोकार
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हम ऐसा मानकर चलते हैं कि कोई भी धर्म व्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित नहीं करता, वह केवल जीवन यापन करने का सही तरीका ही दर्शाता है लेकिन फिर भी ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है जो इस्लाम को एक कट्टर और रुढ़िवादी धर्म के रूप में देखते हैं. विशेषकर महिलाओं के संदर्भ में इस्लाम को कहीं अधिक रुढ़िवादी समझा और देखा गया है. अभी हाल ही में मैंने एक वेबसाइट पर एक आर्टिकल पढ़ा जिसे पढ़ने के बाद मैं यह निर्णय नहीं कर पा रही हूं कि इसमें उल्लेखित निर्देशों को धर्म विशेष का मसला समझकर नजरअंदाज कर देना चाहिए या फिर महिलाओं के प्रति रुढ़िवादिता और अमानवीय सोच को प्रदर्शित करने वाली निम्न कोटि की सोच मानकर विरोध करना चाहिए.


domestic violenceइंगलैंड में एक इस्लामिक मैरेज गाइड आजकल चर्चा का विषय बनी हुई है. इस गाइड में यह निर्देश दिया गया है कि अगर कोई पुरुष अपनी पत्नी पर क्रोध उतारना चाहता है, उसे पीटना चाहता है तो वह कौन-कौन से तरीके अपना सकता है. एक विदेशी समाचार पत्र में इससे संबंधित खबर का प्रकाशन किया गया जिसके अनुसार पति को चाहिए कि वह अपनी पत्नी को छड़ी या फिर हाथ से पीटे. इतना ही नहीं अगर कोई पति अपनी बीबी को दंडित करना चाहता है तो उसे अपनी पत्नी की कान खिंचाई करनी चाहिए, क्योंकि यह एक सबसे अच्छा तरीका है.


उपरोक्त निर्देशों को अगर आप किसी की शैतानी समझकर नजरअंदाज कर रहे हैं तो आपके लिए यह जानना भी जरूरी है कि इसे किसी नौसीखिये या फिर मनचले ने नहीं लिखा क्योंकि इन निर्देशों को जन मानस तक पहुंचाने का जिम्मा स्वयं इस्लाम के महान दार्शनिक और विद्वान मौलाना अशरफ़ अली थानवी ने लिया है.


आदरणीय मौलाना जी के अनुसार अगर विवाह को टूटने से बचाना है तो पति को अपनी पत्नी के साथ ऐसा व्यवहार करना ही चाहिए. लेकिन ऐसे दकियानूसी विचारों की, जिसे इस्लाम की आड़ देकर लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की जा रही है, जितनी निंदा की जाए उतनी कम है.


समय बदलने और आधुनिकता के प्रभाव के बावजूद हम आज भी ऐसे समाज में जी रहे हैं जहां महिलाओं को अपने पृथक और स्वतंत्र अस्तित्व को तराशने के लिए निरंतर प्रयास करने पड़ रहे हैं, लेकिन फिर भी जब महिलाओं के जीवन और उनकी स्वतंत्रता में धार्मिक हस्तक्षेप बढ़ने लगता है तो उनकी सामाजिक और पारिवारिक स्थिति सुधरने की संभावना न्यूनतम या ना के बराबर ही रह जाती है.


हालांकि इस्लाम धर्म के वे अनुयायी जो समय के साथ-साथ बदल चुके हैं और महिलाओं को समान अधिकार देने में गुरेज नहीं करते, इन निर्देशों का कड़ा विरोध कर रहे हैं. लेकिन आज जब महिलाएं पुरुषों के समान खुद को योग्य और काबिल प्रमाणित कर चुकी हैं तो ऐसे में उन्हें मारने-पीटने जैसी बात आश्चर्य से कहीं ज्यादा निराशा का भाव पैदा करती है.


dvपत्नी को मारना-पीटना, उस पर हाथ उठाना घरेलू हिंसा का सबसे बड़ा उदाहरण है जिसे कोई भी महिला कभी सहन नहीं कर सकती और सहन करे भी क्यों? जब महिला स्वतंत्र है, अपने आप को साबित कर चुकी है, पुरुषों के समान या उनसे कहीं ज्यादा प्रभावी ढंग से सफलता के नए-नए आयामों को छू रही है तो वह क्यों किसी पुरुष, भले ही वह उसका पति ही क्यों ना हो, के द्वारा शोषित होना मंजूर करेगी, उनके ऐसे बर्ताव को क्यूं स्वीकार करेगी!!


हम खुद को आधुनिक कहलवाते नहीं थकते लेकिन जब महिला और पुरुष की बात आती है तो ना जाने क्यों एक को सर्वोपरि और दूसरे को हमेशा निम्न दर्शाने में अपना समय बर्बाद करते हैं.  हमारे कपड़े पहनने का तरीका मॉडर्न हो गया है, खान-पान, रहन-सहन सब आधुनिक है लेकिन सोच और मानसिकता आज भी सदियों पुरानी ही चली आ रही है. हमें यह समझना होगा कि जब तक समाज में महिलाओं के अस्तित्व और उनकी स्वतंत्रता को सम्मानपूर्वक स्वीकार नहीं किया जाएगा तब तक स्थिति ऐसी ही बनी रहेगी जैसा हम हमेशा से देखते आ रहे हैं. मेरा यह लेख किसी भी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के उद्देश्य से नहीं लिखा गया है. इस पर व्यवहारिकता से विचार होना नितांत आवश्यक है.


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