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गत कुछ दिनों से जागरण जंक्शन के बेहद मर्यादित मंच पर एक अजीबोगरीब या यूं कहें चित्र-विचित्र शख्सियत अवतरित हुए हैं folly wise man, जो अपने ब्लॉग नेम में शामिल wise की बजाए cunning की रूपरेखा में ज्यादा नजर आते हैं. इन जनाब की कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जिनका उल्लेख करने से मैं खुद को रोक नहीं पा रही, ताकि मंच के सभी समर्पित और निष्ठावान रचनाकारों को इनके बारे में जानने का अवसर मिल सके. हालांकि इन्होंने अपनी लेखनी से अपने बारे में बहुत कुछ कह दिया है, किंतु फिर भी इनके बारे में बताना मुझे उचित प्रतीत हो रहा है.
अपने विचारों में पूरी तरीके से उदारवाद का ढोंग रचा कर ओशो रजनीश के विचारों पर आश्रित इन शख्स का कहना है कि मंच के रचनाकारों के पास रचना की समझ नहीं है, लोग सिर्फ ऊलजलूल ज्ञान का प्रदर्शन करने में संलग्न हैं. इन्होंने अधिकांश लोगों के प्रति पूर्वाग्रह युक्त संभाषणों को निश्रित किया है और निरंतर यह प्रदर्शित करने की कोशिश करते रहे हैं कि सारी दुनियां में यह अकेले बुद्धिमान पुरुष हैं. इनकी रचनाओं को देखने के बाद कोई भी महोदय की आकांक्षाओं, अभीप्साओं और ग्रंथि युक्त मानदंडों के बारे में सहज ज्ञात कर सकता है.
बौद्धिक जंतु के रूप में अपनी पहचान कायम करने की नैंदिक प्रवृत्ति का खुलासा तो इन्होंने अपनी लेखनी से ही कर दिया है. तीखे और मर्म भेदी वचन, वैद्युत चिंगारियों की भांति मर्मांतक वाकबाण चलाने में सिद्धस्त और आत्म प्रशंसात्मक बोध से युक्त विभिन्न वाक शैलियों का प्रयोग करते हुए इन्होंने मंच के गरिमामय वातावरण में विघ्न आरोपित करने के कृत्य को अंजाम दिया है. इंसानी दुनियां की रवायतों से पूर्णत: अबोध, समुदायों के हितों के प्रति पूर्णत: कठोर, नर और नारी के सम्मान की हिफाजत से बिल्कुल इत्तेफाक ना रखते हुए इन स्वयंप्रभु की छिपी महत्वाकांक्षाओं के बारे में कौन अपरिचित रह सकता है.
ऐसे में सभी सम्मानित सदस्यों से यह अनुरोध है कि एक बार अवश्य इनकी रचनाओं पर दृष्टिपात करें कि इन्होंने अपने लेखन कार्य द्वारा साहित्य की किस प्रकार सेवा की है या मंच की गरिमा को बढ़ाने में कितना योगदान दिया है.
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