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हालांकि मामला कुछ पुराना हो गया है लेकिन इत्तेफाकन कुछ ऐसे वाकयात हुए जिससे मैं क़ुछ दिनों पूर्व हुई चर्चित घटना को दोहरा रही हूं. यह घटना शराब के बड़े व्यापारी और अरबों की जायदाद के मालिक पॉंटी चड्ढा और उन्हीं के भाई हरदीप चड्ढा के बीच आपसी रंजिश के चलते एक-दूसरे की हत्या कर देने से संबंधित है. उल्लेखनीय है कि प्रॉपॅटी विवाद को लेकर दोनों भाइयों में बहुत लंबे समय से झगड़ा चल रहा था जिसकी वजह से दोनों भाइयों में गोलीबारी हुई. पॉंटी चड्ढा को 6 गोलियां लगीं वहीं उनके भाई हरदीप के शरीर में 8 गोलियां दागी गईं. प्रॉपर्टी के बंटवारे को लेकर दोनों भाई छत्तरपुर स्थित अपने फार्महाउस में मीटिंग कर रहे थे और इसी दौरान किसी कहासुनी में गोलियों की बौछार शुरू हो गई, जिसका नतीजा हुआ दो भाइयों की मौत.
जिस किसी ने भी इस खबर को सुना वह इस हद तक दो भाइयों की दुश्मनी को देखकर दंग रह गया. पहली नजर में हम इसे पारिवारिक झगड़ा, कलह और आपसी रंजिश का मसला बताकर नजरअंदाज कर सकते हैं, लेकिन यह सोचकर वाकई बहुत चुभन होती है कि क्या आज के समय में पैसा खून के रिश्तों से ज्यादा ताकतवर हो गया है? क्या अब आपसी भावनाओं और प्रेम का रंग पैसे की चमक के सामने फीका पड़ता जा रहा है? शायद हां, तभी तो पैसों के लिए अपनों का खून बहाए जाने से भी संकोच नहीं किया जा रहा.
भारतीय परिवार में तो बड़े भाई को पिता का स्थान दिया जाता है लेकिन अब तो शायद यह मान्यता भी अब समाप्त कर देनी चाहिए. पॉंटी चढ्ढा मायावती के बेहद करीबी व्यक्तियों में से एक थे और शराब के साथ-साथ उनका रियल इस्टेट के क्षेत्र में भी बड़ा कारोबार था. लेकिन किसे पता था यह फलता-फूलता कारोबार ही उनकी जान का दुश्मन बन जाएगा.
वैसे इस हत्याकांड में जितना दोष प्रॉपर्टी विवाद का था उतना ही मीडिया और प्रशासन का भी क्योंकि यह पहली बार नहीं था जब दोनों भाइयों के बीच गोलीबारी हुई लेकिन रसूखदार लोगों का हाई-प्रोफाइल मसला होने के कारण यह खबर दबा दी गई.
हालांकि पॉंटी चड्ढा खुद कोई पाक साफ व्यक्ति नहीं था क्योंकि उस पर अवैध कारोबार और काले धन से जुड़े होने के कई आरोप लगते रहे हैं लेकिन शायद ही किसी ने यह सोचा था कि एक भाई ही दूसरे भाई की हत्या करवा सकता है.
यहां सवाल बस इतना सा है कि आखिर ऐसा क्या हो गया जो आज हम पैसे के लिए अपनों का खून बहाने से भी पीछे नहीं हटते.
इसे आज के दौर का दुष्परिणाम कहें या फिर पारिवारिक मूल्यों की कमीं क्योंकि आज पैसों के लिए लोग अपने सगे संबंधियों के ही जान के दुश्मन बन गए हैं. प्राय: देखा जाता है कि परिवारों में शुरू से ही पैसे की महत्ता को बल दिया जाता है. बच्चों को पैसे की अहमियत तो बताई जाती है लेकिन वह भी इस तरह जैसे पैसे के आगे दुनिया बेकार है. पर शायद कोई यह नहीं सोचता कि जब वह बच्चा बड़ा होगा और दुनियादारी को समझने लगेगा तब उसकी मानसिकता जो पहले से ही पैसों पर केन्द्रित है और कितनी विस्तृत या यूं कहें विकृत होकर सामने आएगी कि वे अपने ही सगे भाई की जान लेने पर उतारू हो जाएंगे.
हाई प्रोफाइल मामला होने के कारण चड्ढा बंधुओं का केस सबके सामने आ गया लेकिन हम इस बात से भी इंकार नहीं कर सकते कि यह कोई पहला मसला नहीं है जब पैसों या फिर प्रॉपर्टी विवाद के चलते अपनों के बीच खून की होली खेली गई. पैसों के सामने रिश्ते किस हद तक अपनी जरूरत कम करवाते जा रहे हैं इस बात का तो जिक्र करना भी अब बेमानी हो गया है.
आज के समय में अगर कुछ भी जरूरी रह गया है तो वह है सिर्फ पैसा और संपत्ति का स्वामित्व. इन सब के बीच आपसी प्यार और लगाव, एक-दूसरे के दुख में बहने वाले आंसुओं के साथ-साथ मूल्यों और अपनत्व की दुहाई देने वाले लोगों की कमी भी महसूस होने लगी है.
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