Menu
blogid : 5462 postid : 295

क्यों महत्वाकांक्षी कश्मीरी युवा जेहादी बनते जा रहे हैं?

सरोकार
सरोकार
  • 50 Posts
  • 1630 Comments

लोकतंत्र का मंदिर कहे जाने वाले भारतीय संसद पर वर्ष 2001 में जो आतंकवादी हमला हुआ था उसके मुख्य आरोपी अफजल गुरू को फांसी पर चढ़ा दिया गया. यह बात सभी जानते हैं कि भारत का कानून बहुत ही नम्र और लचीला है ऐसे में पहले कसाब और अब अफजल गुरू को बिना किसी पूर्व सूचना के फांसी दे देना विवादों से घिर गया है. मुंबई हमलों के दोषी, पाकिस्तानी आतंकवादी कसाब को फांसी दिए जाने से मुद्दा इतना नहीं उलझा जितना कश्मीरी जेहादी अफजल, जिसे आतंकवादी कहा जाना सही नहीं है, की मौत से उलझ गया है. अफजल की मौत उन लोगों के जख्मों पर मरहम जरूर है जिन्होंने उस हमले में अपने करीबियों को खोया था. लेकिन फांसी की यह सजा अपने पीछे एक बेहद गंभीर और अनसुलझे सवाल को भी छोड़ गई है कि क्या वाकई अफजल को मुसलमान होने की सजा मिली? क्योंकि अफजल की फाइल से पहले भी कई सजायाफ्ता कैदियों की दया याचिका राष्ट्रपति के पास लंबित थी जो पिछले कई वर्षों से फांसी का इंतजार कर रहे हैं लेकिन ना जाने ऐसा क्या हुआ जो अन्य सभी केसों को छोड़कर सबसे पहले अफजल को ही फांसी दे दी गई?


हम खुद को धर्मनिरपेक्ष कहलवाना पसंद करते हैं इसीलिए इस सवाल का हल ढूंढ़ने में हमें बहुत डर लगता है या फिर हम इस मुद्दे को सुलझाना ही नहीं चाहते.


अफजल की फांसी आज एक राष्ट्रीय मुद्दा बनकर हमारे सामने है. कश्मीर में जहां अफजल को दी गई फांसी की सजा के विरुद्ध आवाज उठाई जा रही है, धरने प्रदर्शन किए जा रहे हैं वहीं यह भी सुनने को मिला था कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हुए प्रदर्शन के बाद अफजल को शहीद का दर्जा दे दिया गया है.


अफजल गुरू को दी गई फांसी पर कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला का कहना है कि इससे कश्मीर के नौजवानों में व्याप्त असंतोष को और अधिक बढ़ावा मिलेगा. वहीं दूसरी ओर अफजल के परिवार ने जो सवाल सरकार के सामने रखे हैं उनका जवाब तो शायद किसी के भी पास नहीं है.


अफजल के भाई का कहना था कि हमारा परिवार फांसी दिए जाने पर कुछ भी नहीं कहना चाहता बस अपने एक सवाल का जवाब चाहता है कि आखिर क्यों एक समझदार मेडिकल स्टूडेंट, महत्वाकांक्षी व्यक्ति, जो सिविल सर्विसेज की तैयारी की आकंक्षा रखता था, जिसे बरगलाना या बहकाना भी मुमकिन नहीं था,  यकायक अपने सारे सपनों को छोड़कर जेहाद के रास्ते पर चल पड़ा?


आपको नहीं लगता इस सवाल का जवाब कहीं ना कहीं हमारी राजनीति, जो सिर्फ और सिर्फ स्वार्थ से ओत-प्रोत है, की जड़ों में व्याप्त है. कहने को तो हम कहते हैं कि कश्मीर भारत का अंग है जो कभी अलग नहीं हो सकता और कश्मीरी व्यक्ति भारत के आम नागरिकों की ही तरह हैं. लेकिन क्या व्यवहारिक रूप में ऐसा है? कश्मीरी युवाओं में जो असंतोष फैला हुआ है कहीं ना कहीं इसका कारण हमारी रणनीति और क्रियाकलाप तो नहीं हैं?


स्वार्थ में लिप्त विभिन्न हथकंडों द्वारा कश्मीरी युवाओं को हमारे नेता सौतेलेपन का एहसास करवाते हैं जिसकी वजह से कश्मीरियों में असंतोष फैलता है. आए दिन होने वाले अत्याचार, यातनाएं, पुलिसिया कार्यवाही की वजह से कश्मीरी कभी खुद को भारत का अंग नहीं समझ पाते और पाकिस्तानी जेहादी या आतंकवादी उनके भीतर व्याप्त गुस्से और आक्रोश का फायदा उठाकर जेहाद के नाम पर उनसे यह सब करवाते हैं.


इस समस्या की शुरुआत हमने की है और इसका हल भी हमें ही ढूंढ़ना पड़ेगा नहीं तो आज एक अफजल मरा है कल कई और अफजल हमारे सामने होंगे, जिनका कारण होगा बस हमारी घटिया राजनीति और स्वार्थ में लिप्त रणनीतियां.


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to AnonymousCancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh