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हिन्दुत्व को ढाल बनाकर जनता से वोट की अपील करने वाले मोदी आज खुद ही अपने बिछाए जाल में फंसते नजर आ रहे हैं. या तो वे छद्म धर्मनिरपेक्षता का चोला ओढ़कर अन्य धर्मों और संप्रदायों के लोगों के बीच अपनी पहुंच बनाना चाह रहे हैं या फिर हिन्दुत्व का पुरोधा कहलवाए जाने के बाद अब वो अन्य धर्मों के संरक्षण के लिए भी खुद को तैयार कर चुके हैं बस यही बात हमारी समझ से बाहर है.
आपको याद होगा कि अभी पिछले दिनों नरेंद्र मोदी ने अपने एक बयान में देवालय से पहले शौचालय जैसी बात कही थी. इसके पीछे उनका मत था कि हमें देवालयों की नहीं बल्कि शौचालय की जरूरत है. असल में देवालय और शौचालय का यह मसला पहली बार नहीं उठा बल्कि ग्रामीण विकास मंत्री रहते हुए जयराम रमेश स्वच्छता और सुरक्षा का हवाला देते हुए यह मुद्दा पहले ही उठा चुके थे. लेकिन जब जयराम रमेश ने यह मुद्दा उठाया था तब उनके विरोध में स्वर उठाने वाले वही लोग थे जो आज मोदी के इस कथन का समर्थन कर रहे हैं. इतना ही नहीं स्वयं इस बात को कहने वाले नरेंद्र मोदी भी जयराम रमेश पर आक्षेप लगाने वालों की सूची में थे. जाहिर सी बात है नरेंद्र मोदी हिन्दुत्व के संरक्षक के तौर पर अपनी पहचान स्थापित करने में लगे थे तो उनके द्वारा ऐसे विरोध, आक्षेप इसी कड़ी का एक हिस्सा मान लिए गए.
लेकिन अचानक अब नरेंद्र मोदी थोड़े बदले-बदले से लगने लगे हैं, उनके कृतीत्वों और कथनों में बहुत अंतर दिखने लगा है. वह खुद को हिन्दुओं का सबसे बड़ा पुरोधा कहते हैं लेकिन जब हिन्दुत्व के संरक्षण की बात आती है तो उनके वक्तव्यों में बड़ा अंतर महसूस होने लगता है.
देवालय हिन्दू धर्म का प्रतीक है और उसकी तुलना शौचालय के साथ कर नरेंद्र मोदी ने हिन्दू धर्म को आहत तो किया ही साथ ही जिन हिन्दुओं के संरक्षक के तौर पर उन्हें जाना जाता है उनके साथ भी उन्होंने विश्वासघात किया. इतना ही नहीं शोभन सरकार नामक साधु के सपने में आए खजाने के बाद संबंधित किले की खुदाई शुरू किए जाने जैसी घटना पर आए नरेंद्र मोदी के बयान ने फिर एक बार यह सोचने के लिए विवश कर दिया है कि क्या वाकई प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के तौर नरेंद्र मोदी की प्राथमिकताएं और उनके स्टैंड बदल गए हैं?
उल्लेखनीय है किले की खुदाई जैसी बात पर नरेंद्र मोदी ने बिना कुछ सोचे समझे सरकार पर चुटकी ले डाली. चेन्नई में अपनी रैली के दौरान नरेंद्र मोदी का कहना था कि एक साधु के सपने पर खजाने की खुदाई में जुटी केंद्र सरकार पूरी दुनिया में भारत की जगहंसाई करा रही है. जबकि सच तो यह है कि वो खुदाई सरकार नहीं पुरातत्व वैज्ञानिकों के दल द्वारा की जा रही है और वह किसी सपने की बिना पर नहीं बल्कि पुरातत्व वैज्ञानिकों के दल द्वारा की गई जांच-पड़ताल और उस स्थान पर मेटल के होने के संकेत मिलने के बाद खुदाई की जा रही है. इसमें बिना बात के सरकार को घेरने की बात कहना नरेंद्र मोदी की मानसिकता पर प्रश्नचिह्न लगाता है. सपने और साधु के नाम पर राजनीति कर रहे नरेंद्र मोदी को यह समझना चाहिए कि यह मसला सरकारी नहीं प्रशासनिक है और साधु हिन्दू धर्म से संबंधित हैं.
हो सकता है नरेंद्र मोदी अपनी सांप्रदायिक छवि को तोड़ने का प्रयास करने में जुटे हों लेकिन अगर वे ऐसा ही करते रहे तो गुजरात दंगों का दाग तो वह शायद ही कभी धो पाएं बल्कि जिन्होंने आज उन्हें इस मुकाम पर पहुंचाया है वह उन्हीं के हाथों मात खा जाएंगे.
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